न जाने छुपा क्या क्या है ?

सालों से, लोगों ने, कितनी दफे, लिखा है,
अब तुझ पर लिखने को बचा क्या है?

इश्कियत एक जैसी फिर भी हर एक के लिए अलग,
ऐसी ही तो तू भी है, तो फिर इश्क से अलग क्या है?

लेकिन फिर इश्क तो तुझ से भी पुराना है,
उस पर लिख सको तो फिर तुझमें मुश्किल क्या है?

(तो ये प्यार जैसी भावना जो इतनी पवित्र है और हमेशा से होते हुए, एक जैसी होते हुए भी, सबके लिए इसके मायने, विचार और अनुभव अलग अलग है, शायद उतनी ही पवित्र स्त्रीत्व है, और उस स्त्रीत्व को लिए हुए स्त्रियां, और उनसे होने वाले अनुभव सभी के लिये अलग अलग है। कोई स्त्री को मां के रूप में अनुभव करता है तो कोई प्रेमिका तो कोई किसी और रूप में।)

इश्क के बाद तू ही तो ये दुनिया बचाए है,
आदमी को मौका दिया, देखो जरा आगे की उम्मीद क्या है?

(प्यार इस दुनिया के लिए आज के समय में कितना ज्यादा महत्वपूर्ण है, मोहब्बत के बाद स्त्रियां ही तो है जो दुनिया को बचाए हुए है। आदमियों के हाथ में तो दुनिया देकर देख ही रहें है क्या क्या खाक और बर्बाद हो सकता है, जो कुछ अब भी स्त्रियों के हाथ में है बस उसी से हमारी तुम्हारी दुनिया चल रही है शायद।)

आखिर तुझमें ऐसा है क्या जो आदमियों में नहीं,
इश्क, परवाह, समझ, क़ुर्बानी, सहनशक्ति, आखिर इस पर्चे का अंत क्या है?

फर्ज करो तुझ से ये सब अचानक गायब हो जाए,
शुरू में आदमी चौड़ में कहते फिरें, कि हुआ ही क्या है?

नवजात शिशु, बालकनी में बच्चे और बूढ़े मां बाप,
रुखसत अचानक, देखभाली के बिना उनकी जिंदगी क्या है?

ऑफिस, घर, रोटी-सब्जी, परिवार, मेहमान, बच्चे, 
फिर आदमी ही पूछेंगे आखिर इस मर्ज की दवा क्या है?

(जिस दिन ऐसा होगा कि केयर इमोशन गायब हो जायेगा अचानक तो कई नवजात शिशु,  शैतान बच्चे, और बूढ़े मां बाप अचानक इस दुनिया से कम हो जायेंगे और इस काल्पनिक दुनिया में जब तक पुरुष खाना बनाना सीखेंगे और खाना बनाने के साथ साथ सब्जियां मंगवाना, साफ सफाई करना, बच्चों और बड़ों का ध्यान रखना, उनकी पसंद के हिसाब से खाना बनाना, लोकल में बैठ कर सब्जियां काटना और स्टेशन से लैपटॉप बैग के साथ फल लाना, घर आए मेहमानों के लिए अलग अलग पकवान बनाना और भी न जाने क्या क्या और इन सब के साथ साथ अपने दफ्तर का काम भी करना सीखेंगे,  तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी।)

कितना डरावना है कि ये ख्वाबी मर्ज तो तेरी हकीकत है,
आखिर तुझमें ये बेइंतहा मजबूत बात क्या है?

कैसे? कैसे कर लेती है इतना सब कुछ बिना शिकायत के,
ये सब तो वो है जो दिखता है, ना जाने छुपा क्या क्या है?

(काल्पनिक दुनिया में आदमियों के लिए इतने काम एक साथ करने की सोचना भर ही कितना मुश्किल है, और अचरज की बात है की ये सभी काम स्त्रियां हकीकत की दुनिया में एक साथ हर रोज कर रही है।)

न जाने छुपा क्या क्या है ?

तू जमीं है, तू पानी है, तू किरण है, तू हवा है,
तेरे बिना किसी बीज का, जगह रोकने के सिवा काम क्या है?

तेरे और तेरे स्त्रित्व के बिना, कहां ये दुनिया और क्या जिंदगी,
सही है कि तेरे बिना आखिर इस दुनिया में रखा क्या है?

यूं नहीं है की तुझमें खामियां नही है,
इश्क भी अंधा तो दुनिया में मुक्कमल क्या है?

हुस्नी खूबसूरती की दौड़ में, इतनी मशक्कत,
हाजिर अंदरूनी खूबसूरती, बाहर दौड़ने की जरूरत क्या है?

शब्दों से करते तार तार, कहते यारी के लफ्ज़,
शायरों के है इतने अशआर, अल्फाजों की कमी क्या है?

बहुत सोच के मैंने भी कुछ लिख ही दिया है,
लगता है, अब भी तुझ पर लिखा ही क्या है ?

2 thoughts on “न जाने छुपा क्या क्या है ?

Leave a comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.